आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण जी के बारे में जानें

परम श्रद्धेय स्वामी श्रीमिथिलेशनन्दिनीशरण जी महाराज अयोध्या में स्थित सिद्धपीठ श्रीहनुमत्-निवास के पूज्य पीठाधीश्वर हैं। श्रीहनुमत्-निवास श्रीरामभक्ति की रसिक-परमपरा में श्रीहनुमदुपासना का आचार्यपीठ है। पूज्य स्वामी श्रीगोमतीदास जी महाराज की असाधारण तपस्या से प्रसन्न हुये श्रीहनुमान् जी महाराज की स्थापना के माहात्म्य से यह आश्रम अयोध्या के दूसरे सर्वाधिक विशिष्ट हनुमत्पीठ के रूप में विख्यात है। 'कल्याण' के उनचासवें वर्ष के विशेषांक 'श्रीहनुमान्-अंक' श्रीहनुमत्-निवास का परिचय इस प्रकार दिया गया है- ने के लिए जाने जाते हैं।


हनुमन्निवास- यहाँ अयोध्या के प्रसिद्ध संत बाबा श्रीगोमतीदासजी निवास करते थे। बे प्राचीन ऋपियों की भॉति यज्ञानुष्ठान में तत्पर रहते, साधु-सेवा करते और उत्सव-समेया बड़े समारोह के साथ करते थे। वे सिद्धान्त और मन्रके आचार्य थे। आर्तजन अपना दुखड़ा विनय-पत्र द्वारा उनके समक्ष उपस्थित करते और बाबाजी रात्रि में अनुष्ठान से निवृत्त होकर उस पर आज्ञा देते थे। उसके अनुसार जप आदि करने से कार्य की सिद्धि होती थी।


विरक्त शिरोमणि उच्च कोटि के सन्त 'कोठे वाले महाराज जी'के नाम से समाढृत पूज्य स्वामी श्री रामकिशोरशरण जी महाराज श्री हनुमत्-निवास में ही विराजते थे। श्री हनुमत्-निवास से प्रवर्तित उपासना की एक सुीदीर्घ परम्परा श्रीअयोध्या समेत देश के अनेक स्थानों पर विद्यमान है। आचार्यश्री सिद्धपीठ के सातवें पीठाधीश्वर के रूप में अपने दायित्व का वहन कर रहे हैं।

स्वामी श्रीमिथिलेशनन्दिनीशरण जी महाराज जी का जन्म वर्ष 1980 के जून मास में जनपद गोण्डा में हुआ। प्राथमिक शिक्षा के उपरान्त संस्कृत की विशेष शिक्षा हेतु आप अयोध्या आ गये। गुरुकुल प्रणाली प्रथमा, मध्यमा आदि के क्रम से आपने नव्य व्याकरण में शास्त्री परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। प्रारब्धवश बाल्यकाल से ही साहित्यिक अभिरूचि और काव्यलेखन की प्रवृति से प्रेरित होकर आपने अवध विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी में परास्नातक किया। इसी कालावधि में आपका लेखन-भाषण आदि चर्चा का विषय बने! पुन: आपने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से धर्मशास्त्र में आचार्य करते हुये सर्वाधिक अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण तीन स्वर्णपदक प्राप्त किये।


वर्ष 2007- में संयुक्त शोध पात्रता परीक्षा (CRET) में चयनित होकर आचार्य श्री ने डी.फिल् हेतु "तुलसी-साहित्य में कृषक- जीवन की अभिव्यक्ति का स्वरूप" विषय पर शोधकार्य पूरा किया। वर्ष 2012 में औपचारिक रूप से विरक्त दीक्षा ग्रहण कर आप अधथ्यात्म-पथ में प्रवृत्त हो गये और पूरे हुये शोधकार्य के बाद भी 'डॉक्टरेट’ उपाधि नहीं ली।


पूरा पता -


20/2/30 श्री हनुमत् निवास, लक्ष्मणघाट अयोध्या - उत्तर प्रदेश


मो. नंबर

+ 91 9838893001

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